बुधवार, 8 अक्तूबर 2014

किसनगढ़ के शोषण परंपरा की शिनाख्त





                   सृजनकर्ता सृजन क्यों करता है? साहित्य का उद्देश्य क्या है? यश, कीर्ति, मनोरंजन, रुपए कमाना, समाजहित करना या और कोई? अब साहित्य का क्षेत्र सीमित नहीं रहा है, उसमें परिवर्तन हो गए हैं। अनेक विधाएं और विधाओं के अंतर्गत कई प्रकारों में लेखन हो रहा है। उपन्यास विधा में चर्चित बना प्रकार आंचलिक उपन्यास। पाठक, समीक्षक के साथ हर एक को आह्वान करता आंचलिक उपन्यास। इसे बांचना, गुत्थियां सुलझाना, उद्देश्य को पकड़ना, लेखकीय पीड़ा की व्याख्या करना, भाषा के सौंदर्य का विश्लेषण करना, पात्रों के आत्मा की गुंज सुनना... आदि-आदि ‘चैलेंज’ बनकर अंतरबाह्य झकझोर देता है। वर्तमान हिंदी साहित्यकारों में, लेखन करने वाले आंचलिक लेखकों में अग्रणी लेखक के रूप में संजीव को पहचाना जाता है। इनका प्रत्येक उपन्यास आंचलिकता के अनछुए विषयों को लेकर उठता है और उस संसार की विड़ंबनाएं सामने रखता है। यह विड़ंबना उस गांव, आंचल, प्रदेश या किसी विशिष्ट क्षेत्र की होती है परंतु लेखकीय (आंचलिक लेखकों की) विशेषता यह होती है कि वह सीमित होकर व्यापक दर्शन कराती है। कृष्ण ने कुरुक्षेत्र पर खड़े होकर अर्जुन को विराट दर्शन कराए थे। आज प्रत्येक आंचलिक लेखक जीवन की दुर्गम युद्धभूमि पर खड़ा होकर मनुष्य के कई रूपों के दर्शन कराकर सोचने के लिए मजबूर कर रहा है। संजीव भी ‘किसनगढ़ के अहेरी’ उपन्यास से ‘देखिए, सोचिए और चेतिए का आह्वान’ करते हैं। आगे पढ़ें: रचनाकार: पुस्तक समीक्षा – किसनगढ़ के अहेरी

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