रविवार, 26 मई 2013

देशी गांव की सोहनी सुगंध 'बनगरवाडी'




देशी गांव की सोहनी सुगंध ‘बनगरवाडी’ आपके मन में बसी है बडे प्यार से हाथ पककर, खिंचकर और कान पककर भी आपको दिखा रहा हूं। महाराष्ट्र के भीतर फिलहाल सुखे से लोग झुलस रहे हैं। मराठवाडा में इसकी अकल्पनीय मार पडी है। ग्रामीण इलाके और खेत पूरी तरिके से तबाह हो गए हैं। सालों से बच्चों से भी ज्यादा जिन मोसंबी के बगिचों से प्यार किया जो आय का मूल स्रोत थे पानी के बिना सुख चुके हैं। शहरों का कोई नुकसान नहीं कारण उनके कमाई का साधन खेती नहीं; उन्हें पीने के पानी की भी किल्लत नहीं, कारण पानी का प्रश्न चुनावी वोटों से जुता है तो जिनको चुनकर आना है वे, और जो चुने गए हैं वो देश को लूटने के लिए और अपना कुर्सी रूपी धंधा शुरू रखने के लिए पानी की राजनीति में होली खेलेंगे और शहरों में पानी पहुंचता रहेगा। शहरवासी उस पानी को मनचाहा इस्तेमाल भी करेंगे, गाडियां धो डालेंगे, छोटे गमलों और बगिचों को बहे जाने तक पानी देंगे, बाल्टियां और बर्तन बहने लगेंगे, बिना नल वाली पाइपों से शुद्ध पानी बहाते रहेंगे, गलियों के कुत्ते, बच्चे और सुजन भी धमाचौकडी मचाएंगे पानी से। और इधर बेचारा किसान जो सबकी रोटी का इंतजाम करता है, खुली आंखों से खेती को सुखते देखेगा, पीने के पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसेगा। कितना विरोधाभास है भाई। बहुत कुछ कहा जा सकता है पर बयां करने की भी कुछ मर्याएं होती है। बीभस्त, भयानक दृश्यों को दिखाकर डराना उद्देश्य नहीं है पर यह वास्तव है।
      गांवों के भीतर सुहावनापन था, है और रहना चाहिए ताकि हमारा ‘गांवों का देश’ जिंदा रहे। ऐसे ही एक सुंदर गांव से आपका परिचय करवा रहा हूं जो आपके मन में भी बंसा है। जिसकी खूबसूरती देखने के लिए हम सब शहरों से भागकर जंगलों, हरि-भरी प्रकृति, बहते झरनों, घास-फूस की झोपडियों, फटे-पूराने कपडों, गाय-भैसों-बैलों जैसे जानवरों, गोबर से पोते गए आंगनों... में ढूने की कोशिश करते हैं। ‘बनगरवाडी’ पर लिखी समीक्षा लंबी है, आपको पने के लिए समय लगेगा पर मुझे विश्वास है आप बोर नहीं होंगे। भरसक कोशिश की है कि समीक्षा, समीक्षा भी रहे और उसमें आप हो, गांव हो, देश हो और देश को बेचने के लिए उतावले सारे गद्दार भी हो। मूल समीक्षा ‘रचनाकार’ ई-पत्रिका में प्रकाशित है उसकी लिंक दे रहा हूं। लिंक को क्लिक करे सीधे ‘बनगरवाडी’ पर लिखी समीक्षा खुलेगी। आगे पढ़ें -रचनाकार: पुस्तक समीक्षा - देशी गांवों की सोहनी सुगंध बनगरवाडी’ 

                                                                                                       डॉ.विजय शिंदे